270 ईसापूर्व में जब भारतवर्ष पर मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक ने शासन किया. कहते हैं कि कलिंग के युद्ध के बाद जब बहुत लोगों की मौत हुई, इसने सम्राट अशोक को पूरा बदल दिया और अशोक ने बुद्ध धर्म का पालन किया और अहिंसा का रास्ता अपनाया. ये सब बातें तो हम जानते हैं लेकिन एक और रहस्य था जो आज तक सही से नहीं जान पाए हैं. और यह था अशोक द्वारा बनाया गया नौ विशिष्ट लोगों का एक समूह जिसे नौ-रत्न भी कहते हैं.
ये नौ लोगों का समूह विज्ञान और अन्य विधाओं का ऐसा विशेष ज्ञान रखता था जिसका यदि गलत इस्तेमाल किया गया तो पृथ्वी का सर्वनाश हो सकता है. शायद इसी लिए इनको पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया. ये ग्रन्थ निम्नलिखित है:
अधिप्रचार (Propaganda)
शरीरविज्ञान (Physiology)
रस-विधा (Alchemy)
सूक्ष्मजैविकी (Microbiology)
संचार (Communication)
गुरुत्वाकर्षण (Gravitation)
ब्रह्माण्डविज्ञान (Cosmology)
प्रकाश (Light)
समाजशास्त्र (Sociology)
इन सभी विधाओं के जानकार लोगों द्वारा लिखे गए शास्त्रों को कहाँ रखा गया वह किसी को नहीं पता. लेकिन विश्व के मैजिशियन इसको दुनिया के सबसे पुराने सोसाइटी के रूप में जानते हैं.
जो भी हो इसको किसी इतिहासकार ने मुहर नहीं लगाई हैं. इसके बारे में जो भी जानकारी है वह टैलबोट मुंडी द्वारा 1929 लिखी उपन्यास The Nine Unknown से ही है. अब टैलबोट ने सम्राट अशोक के बारे में कहाँ से सुना वह तो किसी को नहीं पता और ये सब सच है कि नहीं वह नहीं पता लेकिन कुंग-फू को इस किताब से लीक एक विधा के रूप में जाना जाता है. लेकिन यह आज तक एक रहस्य है, टैलबोट को शायद कुछ और भी पता रहा होगा लेकिन अब यह राज़ है.
इस बात के प्रमाण हैं कि इनको तिब्बत में कहीं संग्रक्षित किया गया है. इतना ज़रूर है कि यह बौद्ध धर्म के द्वारा चीन और जापान तक ज़रूर गया होगा. अपने देश में तो बौद्ध धर्म लुप्त हो गया और शायद इसी वजह से ये ग्रन्थ हमारे हाथ से निकल गए. कहीं सच में ये ग्रन्थ किसी गलत हाथ में तो नहीं पड़ गए.
इन ग्रंथों में वैमानिकी और एक धातु को दूसरे धातु में बदलने की तकनीक भी है. लेकिन विश्वास नहीं होता हमारे देश के लोगों को. क्या है कि अपने देश का इतिहास इतना पुराना है कि प्रमाण तो हमारे पास रहते नहीं. लेकिन कुछ भी कहो अपने देश के तथाकथिक प्रबुद्ध लोग खंडन करने पहुंच जाते हैं और फैसला सुना देते हैं कि ऐसा कुछ नहीं था, सब झूठ है और पहला प्लेन राइट ब्रदर के नाम. ठीक है, लेकिन अगर हम दुनिया को शून्य नहीं देते तो शायद आज राकेट नहीं उड़ते. क्यों अपने देश के लोग इसे जीरो बनाने में लगे है? ज़नाब कितने भी जीरो लगा लो, बस एक वन चाहिए पूरे जीरो को सही मायने देने के लिए. पता हैं ये वन हैं आप खुद, चाहे तो जीरो के बांये लग के इसको अर्श पर पंहुचा दें या दाहिने लग के फर्श पर - फैसला आप का है. शायद इस देश को बहुत ज़रुरत है उन लोगों की जो इसको मिटटी में नहीं मिलाएं बल्कि इसकी मिटटी को माथे पर लगाएं. क्योंकि :
'कुछ बात हैं कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा'.
No comments:
Post a Comment