कभी भी अगर आपने रेडियो में शार्ट-वेव लगाया होगा तो आपको तरह-तरह की आवाज़ों वाले चैनल सुनाई देंगे. कोई ओपेरा वाले चैनल जिसमें एक महिला अजीब तरीके से कोई हूँ.. हूँ. जैसे आवाज़ में सुनाई देगी तो कहीं कोई बात-चीत की आवाज़ देगी. ऐसे सभी चैनल तो ठीक हैं, लेकिन तभी आप को कोई बीप.. बीप.. बीप.. जैसी आवाज़ सुनाई देगी. ऐसे ही कोई चैनल सुनेंगे जिसमे एक महिला अंकों को बोलती रहेंगे. जैसे वैन.. नाइन.. फाइव.. ऐट.. इस सभी अंको में कुछ भी क्रम नहीं होगा. ये कोडेड मैसेज हैं जिसको मिलिट्री, नेवी या जासूसी संस्थाएं अपने लोगों को सन्देश भेजने के लिए प्रयोग करती है. ये सन्देश एक गणित के फार्मूला को उपयोग करके एन्क्रिप्ट किये गए होते हैं.
जैसे यदि मैसेज भेजना है 'i m ok', इसको भेजा जा सकता है 0901301511. इसमें हमने हर लेटर के स्थान को व्यक्त किया स्पेस को 0 से. पूरा पढ़ने पर यह कोई मोबाइल नंबर दिखेगा. यदि आपको दोस्त आपको यह मैसेज करता है तो पढ़ने वाला इससे फ़ोन नंबर समझेगा. यह तो बहुत बेसिक एन्क्रिप्शन है, लेकिन गुप्तचर संस्थाएं काफी कठिन फार्मूला प्रयोग में लाती है.
इतना ही नहीं, कुछ चैनल तो पियानो या बैंजो जैसा बजाते थे और फिर एक महिला कुछ अंक बदल-बदल कर बोलती है. सोचिये, कोई गुप्तचर अपने कमरे में रेडियो लगा कर सारे इंस्ट्रक्शन सुन कर उसे वापस किसी मशीन से डिकोड करके सन्देश लेता रहा होगा. फिर वह भी वापस मैसेज ट्रांस्मिट करता रहा होगा.
खैर, माना जाता है कि शीत-युद्ध के दौरान ऐसे बहुत से देश एक दूसरे की जासूसी करते थे और इंटरनेट तो था नहीं, उपाय था रेडियो, जिसमें शार्ट वेव से अच्छा क्या हो सकता था. हंगरी, बुल्गारिया, अमेरिका, रूस और न जाने कितने देश संदेह के घेरे में आते है, पर एक बात सबमें कॉमन यह है कि कोई भी इनको डिकोड नहीं कर सका और यह रहस्य, रहस्य ही बना रहा. समय बदला और अब ऐसे चैनल धीरे धीरे काम हो गए है, फिर भी कुछ चैनल अभी भी प्रसारण कर रहे हैं. न जाने कौन सुनाता है और जब कोई सुनाता है तो जरूर कोई सुनता होगा.
जैसे यदि मैसेज भेजना है 'i m ok', इसको भेजा जा सकता है 0901301511. इसमें हमने हर लेटर के स्थान को व्यक्त किया स्पेस को 0 से. पूरा पढ़ने पर यह कोई मोबाइल नंबर दिखेगा. यदि आपको दोस्त आपको यह मैसेज करता है तो पढ़ने वाला इससे फ़ोन नंबर समझेगा. यह तो बहुत बेसिक एन्क्रिप्शन है, लेकिन गुप्तचर संस्थाएं काफी कठिन फार्मूला प्रयोग में लाती है.
इतना ही नहीं, कुछ चैनल तो पियानो या बैंजो जैसा बजाते थे और फिर एक महिला कुछ अंक बदल-बदल कर बोलती है. सोचिये, कोई गुप्तचर अपने कमरे में रेडियो लगा कर सारे इंस्ट्रक्शन सुन कर उसे वापस किसी मशीन से डिकोड करके सन्देश लेता रहा होगा. फिर वह भी वापस मैसेज ट्रांस्मिट करता रहा होगा.
खैर, माना जाता है कि शीत-युद्ध के दौरान ऐसे बहुत से देश एक दूसरे की जासूसी करते थे और इंटरनेट तो था नहीं, उपाय था रेडियो, जिसमें शार्ट वेव से अच्छा क्या हो सकता था. हंगरी, बुल्गारिया, अमेरिका, रूस और न जाने कितने देश संदेह के घेरे में आते है, पर एक बात सबमें कॉमन यह है कि कोई भी इनको डिकोड नहीं कर सका और यह रहस्य, रहस्य ही बना रहा. समय बदला और अब ऐसे चैनल धीरे धीरे काम हो गए है, फिर भी कुछ चैनल अभी भी प्रसारण कर रहे हैं. न जाने कौन सुनाता है और जब कोई सुनाता है तो जरूर कोई सुनता होगा.
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