Wednesday, 8 February 2017

रेहष्यमाई हिम् मानव





हिमालय की खूबसूरत वादियों और बर्फ से ढकी पर्वत-श्रृंखलाओं की खूबसूरती तो पृथ्वी पर स्वर्ग जैसा है, लेकिन इसी स्वर्ग को बंदूकों ने नर्क बना रखा है. फ़र्ज़ करिये, सभी देशों के राजनयिक और राजनेता यहाँ खुद आकर इस स्वर्ग की मनोरम दृश्य को देखकर मंत्र-मुग्ध हो जाते और सारे बैर भूल जाते. ऐसा एक देश और दूसरे देश को बाँट कर रखा है कि क्या कहना. खैर, यह तो भविष्य ही बताएगा कि आगे क्या होगा, लेकिन आज तो ऐसा ही लगता है जैसे हिमालय की इस खूबसूरती को किसी की नज़र लग गई है. या फिर नज़र ही कमज़ोर हो गई है, और इतनी कमज़ोर कि एक भाई दूसरे को पहचान नहीं पाता. गले लगने के जगह गले काटे जा रहे हैं. उम्मीद है, एक दिन एक दूसरे से माफ़ी मांग के हम आगे बढ़ेंगे. बस आँखे नम हो जाती हैं उन शहीदों के परिवारों की सोचकर. देश के लिए अपनी जान देने वालों उन शहीदों और उनके परिवारों की देशभक्ति को हम सल्यूट करते हैं और धन्यवाद देते हैं. 

हिमालय की वादियों में कितने रहस्य और कितने अनसुलझे सवाल हैं. इन सवालों में से एक सवाल येती के अस्तित्व का है. येती को हम इनको हिम-मानव नाम से भी जानते हैं. इनके बारे में कितने ही लोक-कथाएं प्रचलित हैं और उन्नीसवीं सदी में इनके बारे में विदेशी सैलानियों और लेखकों ने भी इनके बारे में लिखा. येती को नेपाल, भूटान और तिब्बत के हिमालय की पर्वत-श्रृंखलाओं में देखा जाने का दावा किया जाता है. 

326 BC, सिकंदर ने किसी येती को देखने का दावा किया था जब वह हिन्दू घाटी पर आक्रमण किया था. लेकिन जानकार बताते हैं कि येती कम ऊंचाई पर नहीं देखा जाता. तो इस दावे को माना नहीं गया. 

1921 में लेफ्टिनेंट कर्नल चार्ल्स-हारवर्ड-बरी के नेतृत्व में एवेरेस्ट की चढ़ाई के दौरान उन लोगों ने कुछ ऐसे पद-चिन्ह देखे जो किसी बहुत बड़े जानवर के हो सकते थे और इनको देखने पर मानव जैसे दो पैर के जानवर जैसे निशान थे. उन लोगों ने अपने पुस्तक में इस बात का ज़िक्र किया की उनका सहयोगी गाइड शेरपा (जो वहीँ का निवासी था) उनको बर्फ के जंगली मानव का पद-चिन्ह बताया जिसे वह मेंतो कहता था. मेंतो का अर्थ मानव-भालू है. 

1925 में N. A. Tombazi और उनके सहयोगियों ने दावा किया कि उन्होंने ज़ेमु ग्लेशियर के पास एक प्राणी को देखा जो देखने में मानव जैसा दीखता था. वह काला था और पूरे शरीर में फर से युक्त था. उसके पैर के निशान मनुष्य जैसे थे. 

1939-45 में, द्वितीय विश्व यद्ध के दौरान पोलैंड के एक सिपाही Sławomir Rawicz साइबेरिया से बच कर भागा था. वह हिमालय के रास्ते भारत जब आया तो उसने बताया कि उसके रास्ते को दो येती ने रोका था. 

1950 में, जेम्स स्टीवर्ट जो इंग्लैंड के अभिनेता थे ने येती के अवशेषों को अपने सामान में चुपके से लन्दन ले गया था. 

1951 में, येती का रहस्य और भी प्रसिद्द हो गया जब एरिक शिपटन ने येती के बड़े पद-चिन्हों को कैमरे में कैद कर लिया. वे फोटोग्राफ बहुत से संदेह पैदा करते है और इनके प्रमाणिकता पर बहुत से सवाल किये गए. 

1953 में, एडमंड हिलेरी और तेनज़िंग ने जब पहली बार एवेरेस्ट की चढाई पूरी की उन्होंने अपने पुस्तक में येती के बारे में कुछ ज्यादा न बोलकर इसको इसको अविश्वसनीय बताया. तेनज़िंग ने हालाँकि इतना ही बोला की उसने कभी येती नहीं देखें, लेकिन उसके पिता ने इस विशाल हिम-मानव को दो बार देखा था. 

1986 में, प्रसिद्द पर्वतारोही Reinhold Messner दावा किया कि उसने येती को आमने सामने देखा है. 

2013 में, जीन-वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि येती का रहस्य खुल गया है और यह पाया गया कि यह पोलर बेयर की प्रजाति का दूर का रिश्तेदार है और यह प्रजाति 40000 साल पहले समाप्त हो गयी थी. इसी के एक साल बाद येती के बालों का DNA विश्लेषण आया जिसमें इसको भालू की हिमालय की एक प्रजाति माना जा सकता है. लेकिन बाद में इसको विश्लेषण के त्रुटि के लिए कीतने सवाल और उठे. 

कुल मिला जुला कर, हमारा विश्लेषण यह है कि येती बस एक रहस्य है. जो देखे हैं उनपर सवाल उठते हैं और जो इसको भालू मानते हैं उनके पास ठोस प्रमाण नहीं हैं. कुछ जो इसे लुप्त प्रजाति मानते हैं वो भी गलत हैं क्योकि लुप्त प्रजाति को कुछ लोग कैसे देख सकते हैं. वैसे ही जैसे हम डाइनासोर को विलुप्त मानते हैं लेकिन कोई उनको देखता थोड़े है. एक सवाल यह है की ये येती भाई इतने छुप के क्यों रहते हैं, ये मनुष्य की प्रजाति है या भालू के, सब रहस्य है. 

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