
अापको 1995 का वर्ष तो याद होगा जब एकाएक सभी गणेशजी की मूर्तियां दूध पीने लगी थी. वो दिन था 21 सितम्बर 1995 का, एक सामान्य सा दिन और उस दिन कोई गणेश चतुर्थी भी नहीं थी. एक जन ने दिल्ली के एक मंदिर में जब गणेशजी की मूर्ति को दूध चढ़ाया तो महसूस किया कि दूध खतम हो रहा है यानी गणेशजी दूध ग्रहण कर रहे हैं. जब उस पात्र को मूर्ति के पास चम्मच से लगाया तो और भी तेजी से दूध खतम हो रहा था. बस फिर क्या था, उस समय तो व्हाट्सऐप तो था नहीं लेकिन अपना बी.एस.एन.एल तो था पूरे भारत में एक दूसरे को फ़ोन कर के सभी एक दूसरे को अपडेट करने लगे और हर कोई भागा मंदिर, दूध पिलाने.
सबने महसूस किया कि मूर्ति के सामने दूध ले जाने से दूध समाप्त हो रहा है. दूधवाले भैया तो दोपहर तक मालामाल होने लगे और गणेशजी ही क्या नंदी और सभी भगवान की मूर्तियां दूध ग्रहण कर रही थीं. यह खबर पूरे बिश्व में फैल गई और भारत ही क्या इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी सभी जगहों में लोगो ने कतार लगा कर दूध पिलाना शुरू कर दिया.
दिल्ली का दूध का सेल्स ३०% बढ़ गया और इंग्लैंड का एक स्टोर ने २५००० पिंट दूध बेचा था (१ पिंट = 0.4732 लीटर).
इसको एक अफवाह और वहम भी कुछ लोगो ने कहा और अपने देशी वैज्ञानिकों ने बताया कि कोशिकार्षण के कारण दूध का पृष्ठ तनाव के वजह से मूर्ति से लगकर बह रहा है. बहुत खूब, लेकिन पहले ऐसा क्यों नही होता था सरजी? विदेशी वैज्ञानिकों ने तो सब खारिज कर दिया था. खैर, शाम तक दूध पीने का सिलसिला खतम हो गया. कहां गया बोगस थ्योरी अापका सरजी?
अपने वैज्ञानिक चचा लोगो मे एक खास बात है, अाज से नहीं न्यूटन साहब के ज़माने से, बात समझे अाधा या पूरा, बोलेंगे पूरा और कुछ भी जारगन वाली भाषा में समझाएंगे ताकि अाप बिना समझे बोल पड़े - ओ ओ, ओके, ओके. यह वैसे ही है जैसे अगर मैं अापको बोलूं अाप भगवान को हिबिस्कस रोसा साईनेनसिस चढ़ा सकते हैं तो अाप क्या समझेंगे? वहीं गुड़हल का फूल बोल दूँ तो अाप समझ जाएंगे, ऐसे ही रखे जाते हैं साइंटिफिक नाम. वैसे अापको राना टिग्रिना साहब तो याद ही होंगे, ऐसा लगता हैं जैसे राना साहब कोट पहन के बैठे होंगे, लेकिन यह साइंटिफिक नाम हैं मेंढक का. क्या राजस्थान में इनको राणा टिग्रिना बोलते होंगे? अच्छा अगर गुस्सा हो गए तो राणा साहब म्हारी गलती तो माफ कर देंगे न? इस बात प्र अगर चंकी साहब होते तो ज़रूर बोलते - अाई ऐम जोकिंग?
वाकई, उस दिन क्या हो रहा था यह तो नहीं पता. मै खुद तो उस दिन दूध नहीं पिलाया था लेकिन मैंने लोगो से सुना था और लोगो ने पूरे विश्वास से मुझे बताया था. कुछ लोगो ने इसको एक मास-प्रोपोगंडा भी कहा. फिर भी इतने लोग एक साथ तो हिप्नोटाइज नही किए जा सकते. अगर पूरे विश्व में ऐसे ही कोई परमात्मा की भक्ति फैला दे तो कोई किसी की कैमरे के सामने जान न ले. मगर अफसोस, न जाने क्यों रोज़ गणेशजी दूध नहीं पीते? अगर पीते तो हम कैमरे में कैद कर उनको दिखा देते और वो कैद से सबको छोड़ देते, फिर वो भी थोड़ा दूध बहाते, खून नहीं. साहब, हम बिना दूध के बच्चों को पाल लेंगे लेकिन अातंक के साये में जीना तो बहुत दुखदाई है वो भी तब जब मानव इतना साइंस मे अागे हो गया है कि वो जानता है कि - 'गणेशजी दूध नहीं पीते'.
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