Thursday, 9 February 2017

दुनिया का सबसे पहला पुनर्जन्म





शांति देवी पुनर्जन्म पर विश्वास करने का पहला ऐसा केस था जिसने न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी पत्रकारों को भी पुनर्जन्म पर विश्वास करने पर मजबूर कर दिया. इतना ही नहीं शांति देवी के केस पर महात्मा गाँधी ने एक जांच दल का गठन किया और उसके इस जन्म से पिछले जन्म के तारों को जोड़ दिया. 

शांति देवी का जन्म 11 दिसम्बर 1926 में दिल्ली के एक छोटे से कस्बे में हुआ था. जब तक वह ठीक से बात नहीं करती थी, तब तक कुछ नया नहीं था. लेकिन जब वह चार साल की हुई तो वह अपने पति और बच्चों के बारे में बात करने लगी. वैसे बच्चों के मुह से ऐसे उठपटांग बातें कोई नयी बात तो नहीं. बच्चे तो कल्पनाशील होते हैं और किसी रोल में खुद को ढाल लेते हैं, कभी वो डॉक्टर बनेंगे तो कभी कुछ. मेरे एक भांजे ने बचपन में ही डिक्लेअर कर दिया था कि मैं ट्रक ड्राइवर बनूँगा. वैसे ट्रक ड्राइवर की नौकरी सम्माननीय है लेकिन ज्यादातर कोई ऐसा नहीं बनाने की तमन्ना रखता. अच्छा, आपने कभी किसी को टीचर बनने की तमन्ना रखते देखा है, कम ही ऐसा होता है. लगता है ज्यादातर टीचर लोग एक्सीडेंटली टीचर बनते हैं. पता नहीं, लेकिन टीचर्स डे 5 सितंबर के दिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद कर के गौरव की अनुभूति हो रही है. 

शांति देवी बताती थीं कि उनका पति मथुरा में द्वारकाधीश मंदिर के सामने एक कपडे को दुकान चलाते हैं और उनका एक लड़का भी है. वह खुद को चौबाइन कहलाती. बचपन के इस खेल को लोग हंसी में टाल देते थे लेकिन धीरे-धीरे मामला थोड़ा भिन्न होने लगा जब वह अपने पिछले जन्म में उसके पति के बारे में बताती और खाते समय वह बताती कि वह कौन सी मथुरा की मिठाई पसंद करती थी. ऐसा किसी बच्चे के लिए सोच पाना सामान्य तो नहीं. और तो और वह अपने पिछले जन्म के पहनावे के बारे में बताती, वह बताती थी कि उसका पति गोरा था और उसके चेहरे पर निशान था. 

जब वह छः साल की हुई तो उसने अपने बच्चे के सर्जरी से पैदा होने की बात बताई तो माता-पिता को बहुत हैरानी होने लगी. वह मथुरा जाने की जिद्द करने लगी. बाद में रामजस हाई स्कूल के टीचर ने उससे उसके पति का नाम पूछा, पहली बार उसने अपने पति का नाम केदारनाथ चौबे बताया और फिर द्वारकाधीश मंदिर के सामने के पते पर केदारनाथ चौबे को खत लिखा गया. केदारनाथ के एक रिश्तेदार कांजीमल जो दिल्ली में रहते थे, उन्होंने शांति देवी से मुलाकात की. उसने मथुरा के घर के बारे में सटीक बाते बताई जो वही बता सकता है जो वहां रहा हो. उसने यहाँ तक एक कुँए का ज़िक्र किया जो उनके घर में था और उसके बगल में एक गमले में छिपाए हुए पैसों के बारे में भी बताई. 

जब कांजीमल ने केदारनाथ को ये बाते बताई तो उसे यकीन हो गया कि वह उसकी पत्नी लुगड़ी बाई है जो 1902 में पैदा हुई और जिसके 10 वर्ष की अवस्था में केदारनाथ के साथ शादी हुई. केदारनाथ की दो कपडे की दूकान थी एक हरिद्वार में और दूसरी द्वारकाधीश मंदिर के सामने, धार्मिक होने के कारण लुगड़ी बाई ने मथुरा में रहना पसंद किया. लुगड़ी बाई की पहली प्रेग्नेनसी में दिक्कते आईं और सी-सेक्शन के बाद भी बच्चा बचाया नहीं जा सका. दुबारा फिर जब वह प्रेग्नेंट हुई तो उसके सर्जरी के बाद 25 सितम्बर 1925 में मौत हो गई लेकिन बच्चे को बचा लिया गया. उसका दूसरा जन्म 11 दिसम्बर 1926 में दिल्ली में हुआ. 

शांति देवी को महात्मा गाँधी के सहयोग से एक टीम ने उसके पिछले जन्म के स्थल मथुरा तक ले गए. वहां कुँआ तो नहीं था लेकिन बाद में केदारनाथ ने बताया की उस कुँए को ढक दिया गया है और उसने जिस गमले में पैसे रखे थे उसकी भी पुष्टि की. शांति देवी अपने पिछले जनम के माता-पिता और अपने सभी रिश्तेदार से मिली. ज़रा सोचिए कैसा महसूस होगा की आपके सामने जो आपका परिचित है वह मृत है और उसकी आत्मा से युक्त कोई सामने है जिससे आप अपने सारे पुराने यादों के बारे में बात कर सकते हैं. बहुत अजीब लगा होगा उन लोगों को और मुख्य रूप से उनके पिछले जनम के माता पिता को. सबसे बड़ी मुश्किल तो शांति देवी के अपने माता-पिता को हुआ होगा.

पुनर्जन्म एक पेंचीदा विषय है, जहाँ हिन्दू इसपर विश्वास कर लेते हैं बाकि धर्मों में इसपर कोई विश्वास नहीं करता. डॉक्टर इयन स्टीवेंसन ने शांति देवी के केस पर पूरा रिसर्च किया और ऐसे विषयों के आलोचक होने के बावजूद भी उन्होंने इस केस को काफी अलग और अविश्वश्नीय लेकिन सत्य बताया. 
जो भी हो, ऐसे तो बहुत से मामले बाद में पाए गए. आपको ऋषि कपूर की क़र्ज़ फिल्म तो याद होगी, इसी विषय पर ओम शांति ओम भी आयी. दोनों फिल्मों में दो बात तो कॉमन हैं वह है पुनर्जन्म और शांति नाम. क़र्ज़ फिल्म में शांति नाम किसका था? एक बार फिर देखिए और आपको जवाब मिल जायेगा.

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